जैनकुल में जन्मे, पर जैन नहीं बन सके
(मननीय-लेख)
✍🏻 *प्रो. सुदीप कुमार जैन, नई दिल्ली*
कल *दिनांक 12 फरवरी 2020* को सुबह अपने विश्वविद्यालय के कुलपति-कार्यालय में *सुल्तानपुर की सांसद श्रीमती मेनका गांधी* से चर्चा करने का प्रसंग बना। वे किसी आवश्यक सारस्वत-कार्य से विद्यापीठ के कुलपति जी के पास आयीं थीं और उस कार्य के लिये सर्वाधिक-उपयुक्त जानकर कुलपति जी ने मेरी भेंट उनके साथ करायी, जो लगभग सवा घंटे तक चली। उसके विषय विश्वविद्यालयीय थे, जिनकी चर्चा करना यहाँ अपेक्षित नहीं है। किन्तु *श्रीमती मेनका गांधी जी ने जैनधर्म और जैनों के बारे में जो विचार विशेषतः मुझसे व्यक्त किये, उनका सारांश मैं इस संक्षिप्त लेख में आप सबके साथ शेयर कर रहा हूँ।*
मुझे जैन जानने के बाद तथा कुलपति-कार्यालय में मेरे द्वारा चाय, नाश्ता एवं पेयजल आदि नहीं लेने पर उन्होंने जिज्ञासा व्यक्त की, तो कुलपति जी ने उन्हें बताया कि *"प्रो. सुदीप कुमार जैन पिछले 33 वर्षों से इस विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं, किन्तु अपनी धर्मनिष्ठता के कारण ये कभी भी कुछ नहीं लेते हैं।"* तो श्रीमती मेनका गांधी यह जानकर हर्षित हुईं और उन्होंने कहा कि *"यद्यपि मैं जैनकुल में नहीं जन्मी हूँ, यह सौभाग्य मुझे नहीं मिल सका है ; तथापि मैं अपने आचरण से जैनधर्म का ही पालन करती हूँ। और ऐसा करने का मुझे गर्व है।"*
इसके बाद श्रीमती मेनका गांधी जी ने मुझे जो कहा, वह एक जैन होने के नाते मुझे गहराई तक बींध गया। वे बोलीं *"प्रो. जैन! आप अपने धर्माचरण पर निष्ठापूर्वक दृढ़ हैं, यह जानकर मुझे बहुत अच्छा लग रहा है। किन्तु जब आपकी जैनसमाज के कई कुलदीपकों को जैनधर्म के आदर्शों एवं सिद्धांतों के विपरीत आचरण करते देखती हूँ, तो मन बहुत दुःखित होता है। क्योंकि इस धर्म को मैं अपना आदर्श मानती हूँ।"*
मेरे द्वारा इस विषय में जिज्ञासा व्यक्त करने पर उन्होंने स्पष्ट किया कि *"पिछले कई दशकों से राष्ट्रीय राजनीति में सक्रिय रहने से एवं केन्द्र सरकार में विभिन्न मंत्रालयों का दायित्व संभालने के कारण मैं ऐसे कई जैनों से परिचित हो चुकी हूँ, जो जैनकुल में उत्पन्न होकर भी हिंसक-व्यापार में संलग्न हैं। वे अपने कर्मों से जैनधर्म को कलंकित कर रहे हैं।"*
उन्होंने आगे कहा कि *"कई लोग तो अलकबीर जैसे विशाल-कत्लखाने चला रहे हैं, जिनमें हजारों जानवर हर रोज़ काटे जाते हैं और लोगों के खाने के लिये उनका माँस विश्वभर में सप्लाई किया जाता है।"*
*"इसीप्रकार कई जैनों को मैं जानती हूँ कि जो चमड़ा-उद्योग संचालित कर रहे हैं। जिनमें कत्लखानों में काटे गये जानवरों का चमड़ा लाकर उसे विभिन्न-वस्तुओं के निर्माण के योग्य बनाया जाता है। इस प्रक्रिया में भी बहुत जीवहिंसा होती है और हिंसक-परिधानों को बढ़ावा मिलता है।"*
*"ऐसे ही कई जैन जूता-उद्योग चला रहे हैं, जिनमें वह चमड़ा काम में लिया जाता है। इतना ही नहीं, मुलायम व आरामदेह जूतों, पर्सों आदि के लिये जो चमड़ा काम में लिया जाता है, वह गर्भवती गाय आदि को काटकर उनके गर्भस्थ शिशु को मारकर तत्काल उनका चमड़ा उतारकर प्रसंस्कृत किया जाता है, जिसकी प्रक्रिया क्रूरता की पराकाष्ठा के रूप में घटित की जाती है।"*
*"कई जैन तो कीटनाशकों/पेस्टीसाइड्स को बनाने का काम कर रहे हैं, जो कि जीव-जन्तुओं की क्रूरतापूर्ण-हत्या के काम आती हैं। ऐसे ही कई लोग विषैले-पदार्थों को बनानेवाले उद्योग चला रहे हैं, जिनके उत्पाद सिर्फ किसी न किसी जीव के प्राणवध के कारण होते हैं।"*
*"फूलों से बनाये बनाये जानेवाले इत्र आदि के उद्योगों एवं केमिकल-संबंधी कई उद्योगों में भी अनन्त-जीवों की प्रत्यक्ष-हिंसा होती है। इसीप्रकार अचार आदि के उद्योगों में भी स्पष्टरूप से जीवहिंसा की बहुलता है।"*
*"इसीप्रकार कई जैनलोग शेयर-मार्केट में ऐसे उद्योगों में अपना धन निवेशित करके मोटी-कमाई करके उस कमाई से मौज कर रहे हैं, जो उद्योग पूरीतरह से हिंसक-प्रक्रिया अपनाते हैं। उनमें प्रतिदिन क्रूरतापूर्ण-तरीके से हजारों-लाखों प्राणियों की निर्ममता-पूर्वक हत्या की जाती है। और ऐसे उद्योगों में धन निवेशित करके वे जैन इस जीवहिंसा को बढ़ाव दे रहे हैं।"*
*"मुझे आश्चर्य है परम-अहिंसक जैनधर्म के अनुयायी कहे जानेवाले जैन इन और ऐसे अन्य अनेकों क्रूरतापूर्ण हिंसक-कार्यों में संलग्न हैं। क्या आप इस बात को जैनसमाज में पहुँचायेंगे कि इन उद्योगपतियों एवं निवेशकों के कारण विश्व में प्राणियों के वध का क्रूर-व्यापार बढ़ रहा है और इनके कारण जैनधर्म और जैनसमाज बदनाम हो रहा है।"*
उनके ये वचन मुझे अन्तर तक बींध गये। एक जैन होने के नाते ऐसा प्रतीत हुआ कि मानो मुझे एवं सम्पूर्ण जैनसमाज को ऐसे कुकृत्यों में लिप्त बताया जा रहा हो। मैंने उन्हें वचन दिया कि "मैं अपने स्तर पर उनका अवश्य यह अभिप्राय जैन-जगत् में पहुँचाने का नैष्ठिक प्रयास करूँगा।"
मैं क्या आप लोगों से यह निवेदन कर सकता हूँ कि हम लोग मिलकर यह संकल्प लें कि जो लोग ऐसे जिनकुल-विपरीत-आचरण में संलग्न रहकर जिनधर्म को कलंकित कर रहे हैं, उनसे हम अपने सम्बन्ध नहीं रखें, और हम स्वयं भी अपने जीवन एवं कार्यों की समीक्षा करें कि कहीं प्रत्यक्ष या परोक्षरूप में हम भी तो ऐसे कार्यों में लिप्त नहीं हैं? या ऐसे हिंसक-उत्पादों का प्रयोग तो नहीं कर रहे हैं? यह गम्भीरता-पूर्वक आत्मालोचन का विषय है और पूरी निष्ठा एवं दृढ़-संकल्प से हमें अपने आपको एवं अपने सहधर्मियों को सही-मार्ग पर लाने के लिये, जैनत्व के संस्कारों की सुरक्षा के लिये कई प्रभावी कदम उठाने होंगे। अन्यथा हमारे आचरण को देखकर कोई भी हमें जैन मानने तक को तैयार नहीं होगा। यह जैनत्व की अस्मिता का प्रश्न है और इस विषय में हम सभी को मिलकर कई सार्थक प्रयास करने होंगे।
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